30th September is celebrated as International Translation Day. It was launched as an idea to show solidarity of the worldwide translation community in an effort to promote the translation profession in different countries. This is an opportunity to display pride in a profession that is becoming increasingly essential in the era of progressing globalisation. Pratham Books' language editors and translators are celebrating this day through a series of blog posts.
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उन दिनों अंग्रेज़ी की परीक्षा में अन्य प्रश्नों के साथ साथ अनुवाद के लिए भी एक पैराग्राफ आता था | डैडी के समय में भी ऐसा था और हमारे दसवीं कक्षा में आने तक भी ऐसा ही था कि इम्तेहान में या एक पैराग्राफ अनुवाद के लिए आता था या फिर कुछ वाक्य अनुवाद के लिए आते थे | डैडी बताते हैं कि उनके बचपन में पैराग्राफ काफ़ी लम्बा और पेचीदा हुआ करता था | जब वे आठवीं में पढ़ते थे, अंग्रेज़ी के उनके पर्चे में एक पैराग्राफ आया था जिसका अंग्रेज़ी में अनुवाद करना था | डैडी पहले ही वाक्य को पढ़ कर परेशान हो गए थे, उनकी समझ में नहीं आ रहा था कि वे क्या लिखें | पैराग्राफ का वह पहला वाक्य था 'वहाँ राम राज्य था |'बहुत सोच विचार के बाद डैडी ने लिखा था 'There was Rama's kingdom.' वे आज भी इस बात को याद कर कर के हँसते हैं | स्कूल के जिन वर्षों में हमारी परीक्षा में अनुवाद वाला पश्न आया करता था, मैं हमेशा यही सोचता रहता था कि कहीं डैडी की तरह मुझे भी वही वाक्य अनुवाद के लिए न आ जाए | मैं 'राम राज्य' के लिए क्या लिखूँगा ? रामाज़ किंगडम तो डैडी ने कितना ठीक लिखा था, मगर क्योंकि वह ग़लत था, तो सही में क्या लिखेंगे? कैसे लिखेंगे? कक्षा दसवीं, ग्यारहवीं तक आते आते यह समझ में आने लगा था कि अनुवाद करना कोई बाबा जी का खेल नहीं है |
ग्यारहवीं, बारहवीं में अंग्रेज़ी के बहुत से अच्छे अच्छे लेखकों से परिचय हुआ और उनकी सुन्दर रचनाओं से मुलाक़ात हुई | कुछ रचनाएँ तो ऐसी थीं कि मानो दिलो दिमाग़ पे छा सी जाती थीं और वहाँ से हटने का नाम नहीं लेती थीं | उनके पात्र दिन रात मन में ही रहते थे और घटनाएं दिल को इस क़दर छू जाती थीं कि कई बार आँखें गीली हो जाया करती थीं | दो चार बार मन में यह आया कि अगर मैं यह कहानी लिखता तो कैसे लिखता | अब अंग्रेज़ी तो उतनी आती नहीं थी कि लुईसा मे एल्कॉट की तरह लिख पता तो अगले दो-तीन महीनों में हिंदी में लिखा गया नया 'लिट्ल विमेन'| थोड़े दिनों बाद बारी आई एक और दिल को छू लेने वाली कहानी की जिसे पर्ल एस. बक की पुस्तक 'गुड़ अर्थ एंड सन्ज़' से लिया गया था | कहानी पढ़ने के महीनों बाद तक मैं उन चीनी पात्रों को नहीं भूल पाया | वह ग़रीब दर्जी हमारे देश के किसी भी कोने का कोई भी दर्जी हो सकता था | मैंने फिर से हिंदी में वह कहानी लिखनी शुरू की और १०-१५ दिनों में वह पूरी हो गई | हिंदी में लिखी वह कहानी पढ़ने में अच्छी लगी तो मम्मी को सुना दी | उन्होंने बड़े मन से सुनी और बाद में कई बार हम दोनो उस कहानी की घटनाओं और पात्रों पर बातें करते रहे | अकस्मात ही मुझे महसूस हुआ कि मैं अनुवाद कर सकता हूँ | मैंने अपने अनुवाद को अंग्रेज़ी की कहानी से मिलाया तो पाया कि बड़ा अच्छा मेल था, कहीं भी कुछ विशेष छूटा नहीं था | मैं बड़ा खुश हुआ पर मन से उस राम राज्य वाले वाक्य का डर नहीं गया था |
मुझे धीरे धीरे समझ आया कि वहाँ राम राज्य था और वहाँ राम का राज्य था में कितना अंतर है | पहले वाक्य को तब तक अनुदित नहीं किया जा सकता जब तक कि राम राज्य का अर्थ न समझ लिया जाए | राम राज्य तो एक अभिव्यक्ति मात्र है एक पूरे युग की, समाज की व्यवस्था की, मान्यताओं की और शांति की, इसे भला दो चार शब्दों में कैसे भाषान्तरित किया जा सकता है| और तब यह भी अहसास हुआ कि किसी कक्षा की परीक्षा में ऐसा एक वाक्य अनुवाद के लिए देना अपने आप में कितनी बड़ी नासमझी थी | डैडी का वह उदहारण हमेशा मुझे यह याद दिलाता रहता है कि परिवेश को जाने बिना, संस्कृति को समझे बिना किसी भी भाषा के बारे में कुछ भी समझ पाना लगभग नामुमकिन है और यदि वह भाषा ही समझ में नहीं आती तो उसके धागों से बुने ताने बाने को किसी दूसरी भाषा के रंगों में ढ़ालना कैसे सम्भव होगा? और इन की पहचान के बिना किया हुआ अनुवाद कैसे मूल भाषा के रंग, ख़ुश्बू, माहौल, तजुरबों, सम्बन्धों आदि के आयामों को सही रौशनी में दिखा पायेगा ? राम राज्य और राम का राज्य में तो ज़मीन और आसमान का अंतर है | और भाषाओं की अच्छी समझ, संस्कृतियों का गहरा अनुभव और बातों को अपनी तरह से कहने की ललक ही शायद इस अंतर को पाट सकती है |
Illustration courtesy : Niloufer Wadia